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कर के दायरे में अब डेरिवेटिव्स भी
भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके के बाद अब आयकर विभाग की ओर से कंपनियों और बैंकों को विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में हुई हानि का खुलासा करने को कहा गया है। वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही के लिए अग्रिम कर भुगतान से पहले ही आयकर विभाग ने डेरिवेटिव्स मुद्दे पर विभिन्न बैंकों और कंपनियों के साथ विचार – विमर्श किया है।
सूत्रों विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके से मिली जानकारी के मुताबिक , बैंकों और कंपनियों को विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में हुई हानि और भारत व विदेशों में उनकी शाखाओं के व्यापार ढांचे का खुलासा करने के लिए बुलाया गया था। इस प्रक्रिया का मकसद डेरिवेटिव्स में हुई हानि पर कर के प्रभाव का आकलन करना था।
हालांकि इस साल कर संग्रह पर इसका बहुत कम प्रभाव पड़ने का अनुमान है , लेकिन 2008-09 में इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में आयकर अधिकारी कंपनियों और बैंकों की कर और वित्तीय लेखांकन का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ही मामले की जांच विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके की जाएगी। इस जांच में कंपनियों व बैंकों को हुई वास्तविक हानि का आकलन किया जाएगा और उसी अनुपात में कर योग्य आय के बारे में निर्णय लिया जाएगा।
हालांकि इस पर अंतिम रूप से चर्चा संभवत : अगले वित्तीय वर्ष में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की ओर से जारी गाइडलाइन के मुताबिक की जाएगी। गौरतलब है कि बैंकों और कंपनियों की ओर से विदेशी व्यापार में होने वाले संभावित जोखिम के मद्देनजर विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स का इस्तेमाल किया जाता है।
इनमें लोन और बाँड के जरिए विदेशी मुद्रा अजत की जाती है। इसके अलावा , बैंकों और कंपनियों की ओर से विदेशी बाजार से लोन और बाँड हासिल करने के लिए क्रेडिट डेरिवेटिव्स भी जारी किए जाते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक , ज्यादातर बैंक , जो डेरिवेटिव्स कारोबार में शामिल हुए हैं , उन्होंने अनुमान के आधार पर इस व्यापार में शमिल हुए। इस तरह के कारोबार में अवांछित तरीके से मुद्रा अर्जित की गई है।
उधर , वैश्विक बाजार में उथल – पुथल की वजह से विदेशी एक्सचेंज विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके डेरिवेटिव्स में भी काफी नुकसान हुआ है। कर विभाग इस बात की पड़ताल में लगा है कि बैंक व कंपनियों की ओर से विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में अपने पोर्टफोलियो के जोखिम को बचाने के लिए प्रवेश किया या फिर पूरी तरह से यह अनुमान पर आधारित था। ऐसे में अनुमान के आधार पर किए गए व्यापार में हुई हानि या लाभ को ध्यान में रखकर कर निर्धारण नहीं विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके किया जाता है। सच तो यह है कि बहुत से भारतीय बैंक व कंपनियों को विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स कारोबार में काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
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भारत की आयात-निर्यात नीति (विदेशी व्यापार नीति) 2001-02 पर एक लेख लिखिए।
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अवैध तरीके से अमेरिका में प्रवेश की कोशिश, गुजरात के 37 परिवार तुर्की में हुए लापता या किडनैप
अमेरिका में अवैध तरीके से प्रवेश की कोशिश में गुजरात के करीब 118 लोग तुर्की में लापता हैं या किडनैप किए जा चुके हैं.
इन लापता लोगों में से अधिकांश उत्तरी गुजरात के रहने वाले हैं, जहां की ग्रामीण जनता के बीच किसी भी तरह से अमेरिका पहुंच . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : March 14, 2022, 11:59 IST
अहमदाबाद: मानव तस्करी रैकेट की जांच कर रहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने खुलासा किया है कि गुजरात से अमेरिका की खतरनाक रूप से अवैध यात्रा के दौरान ‘लापता’ होने की आशंका वाले अप्रवासियों की संख्या 136 तक पहुंच गई है. जनवरी में तुर्की जाने वाले गुजरात के कलोल तालुका के एक गांव के 2 जोड़ों और 2 बच्चों सहित 6 अवैध अप्रवासियों के लापता होने की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों ने पाया कि 18 विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके और गुजराती, जिन्होंने मेक्सिको-तुर्की मार्ग से अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करने का विकल्प चुना था, उन्हें इस्तांबुल में लैंड करने के बाद कथित तौर पर अपहरण कर लिया गया.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा, आगे की जांच से पता चला है कि यह संख्या 37 परिवारों तक होने का संदेह है, जिसमें गांधीनगर, मेहसाणा और अहमदाबाद जिलों के 112 लोग शामिल हैं. इस जांच से जुड़े एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ”छह अवैध अप्रवासियों के लापता होने की जांच से पता चला कि यह तो बहुत छोटी संख्या है. गांधीनगर और मेहसाणा के विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके 18 अन्य लोगों का भी तुर्की में कथित तौर पर अपहरण किया गया. अब तक 112 ऐसे और अवैध प्रवासियों के या तो लापता होने या तुर्की माफिया द्वारा अपहरण किए जाने का संदेह है.”
गुजरात के 37 परिवार अमेरिका में अवैध प्रवेश की प्रक्रिया में लापता
पुलिस अधिकारी ने कहा कि 37 परिवारों विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके को 10 से 20 जनवरी के बीच इस्तांबुल भेजा गया था. गुजरात के एजेंट अन्य देशों के अधिकारियों और आपराधिक तत्वों से जुड़े हैं, जो तस्करी की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाते हैं. तुर्की उन लोगों के लिए एक बीच का पड़ाव है जो बिना कानूनी अनुमति के अमेरिका में प्रवेश करना चाहते हैं. एक बार जब अप्रवासी तुर्की पहुंच जाते हैं, तो उन्हें जाली पासपोर्ट का उपयोग करके हवाई या समुद्री मार्ग से मैक्सिको भेजा जाता है. फिर मेक्सिको में एजेंट प्रवासियों की अमेरिका में गैरकानूनी तरीके से एंट्री करवाते हैं.
उत्तरी गुजरात ग्रामीण अमेरिका पहुंचने के लिए उठा रहे बड़ा जोखिम
हालांकि ऐसे मामलों में माफिया तत्व अवैध अप्रवासियों को किसी भी तरह फंसा लेते हैं. अप्रवासियों के कुछ रिश्तेदारों के पास 2 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक की फिरौती मांगने के लिए फोन आए हैं. परिवार के ये सदस्य इस डर से पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए तैयार नहीं हैं कि कहीं माफिया उनके संबंधी को नुकसान न पहुंचाएं. इन लापता लोगों में से अधिकांश उत्तरी गुजरात के रहने वाले हैं, जहां की ग्रामीण जनता के बीच किसी भी तरह से अमेरिका पहुंच जाने का बड़े पैमाने पर जुनून है. इसके लिए लोग किसी भी हद तक जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं.
उत्तरी गुजरात के ग्रामीण विदेशी मानव तस्कर गिरोह के बन रहे शिकार
जांच अधिकारी ने बताया, ”जब अवैध अप्रवासी तुर्की पहुंचते हैं, तो इस्तांबुल में मानव तस्कर उन्हें 3-6 महीने के लिए किराए के फ्लैटों में रखते हैं, जब तक कि उन्हें मेक्सिको के माफिया से हरी झंडी नहीं मिलती. यहां तक कि अगर अप्रवासी सुरक्षित रूप से तुर्की छोड़ देते हैं, तो भी मेक्सिको में उन्हें प्रताड़ित किए जाने की संभावना है. यदि गुजरात में उनके एजेंट या अवैध यात्रा को प्रायोजित करने वाले, मुख्य रूप से अंगडिया अपने खर्च के लिए धन उपलब्ध कराने में विफल रहते हैं. जनवरी में अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश के दौरान गांधीनगर के डिंगुचा के पटेल परिवार के 4 सदस्यों की कनाडा सीमा के पास बर्फ में विदेशी बाजार में प्रवेश के तरीके जमने से मौत हो जाने के बाद गुजरात में अवैध आव्रजन रैकेट जांच के दायरे में आया था.
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