जर्मनी में क्या हैं बंदूक रखने के नियम

तख्तापलट की एक संदिग्ध कोशिश के बाद जर्मनी में बंदूक रखने से संबंधित कानून को और कड़ा करने की कवायद हो रही है. जर्मनी में बंदूक रखने से संबंधित कानूनी पहलुओं पर डीडब्ल्यू की यह रिपोर्ट.

जर्मनी में हथियार अधिनियम के मुताबिक यदि आप कोई हथियार या बंदूक खरीदना चाहते हैं या अपने पास रखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको वाफेनबेस्टित्सकार्ते (Waffenbesitzkarte) नाम के एक विशेष कार्ड की जरूरत पड़ेगी. और यदि हथियार या गोली से भरी बंदूक लेकर चलते हैं तो इसके लिए वाफेनशाइन (Waffenschein) नाम के एक विशेष लाइसेंस की जरूरत होगी. इसका मतलब हथियारों का संग्रह करने वालों यानी खरीद बिक्री करने वालों को सिर्फ वाफेनबेस्टित्सकार्ते की जरूरत होगी. शिकार करने वालों को हथियार का लाइसेंस तब तक नहीं मिल सकता जब तक कि उनके पास शिकार करने का लाइसेंस यानी याग्ड्शाइन नहीं है और इस मकसद से खरीदी गई बंदूक का उपयोग वे सिर्फ शिकार के लिए ही कर सकते हैं.

हथियार रखने संबंधी कार्ड होने का मतलब यह है कि इसके होने से बंदूक मालिक अपनी बंदूक को एक जगह से दूसरी जगह तक सिर्फ पहुंचा सकता है, उसे साथ लेकर चल नहीं सकता. यानी बंदूक को किसी बंद चीज में रखकर ही सार्वजनिक जगह पर चल सकते हैं.

बंदूक रखने के लिए लाइसेंस यानी वाफेनशाइन केवल दुर्लभ मामलों में ही मिलता है. खासकर तब जबकि आवेदनकर्ता यह सिद्ध कर सके कि उसे आम लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा खतरा है और बंदूक रखने की वजह से वह सुरक्षित रह सकता है. जर्मन कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो यह स्पष्ट कर सके कि बंदूक को अनिवार्य रूप से बंद डिब्बे में रखना है या फिर सार्वजनिक जगह पर उसमें गोली भरी जा सकती है या नहीं.

इसके अलावा छोटी बंदूकों के लिए क्लाइनेर वाफेनशाइन नाम का एक अलग सर्टिफिकेट जारी किया जाता है जिसे प्राप्त करना आसान होता है और कम क्षमता वाले हथियारों को रखने के लिए यह सर्टिफिकेट अनिवार्य होता है. इनमें छोटी पिस्टल, बंदूकें या ऐसे हथियार जिनकी वजह से सिर्फ जलन सी एक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? होती है, कोई और खतरा नहीं होता है. कम क्षमता की एअर गन (7.5 जूल से कम) भी इसी नियम के तहत आती हैं.

इन प्रमाणपत्रों की कीमत करीब पांच सौ यूरो बैठती है जिसमें जरूरी बीमा प्रीमियम भी शामिल होता है.

जर्मनी में किस तरह की बंदूकें रखने की कानून अनुमति देता है

जर्मन कानून के तहत हथियार और युद्ध हथियार के बीच एक स्पष्ट अंतर है. युद्ध हथियारों की सूची वेपंस कंट्रोल एक्ट के तहत स्पष्ट की गई है.

किसी भी तरह का युद्ध हथियार रखना या इस्तेमाल करना जर्मनी में गैर कानूनी है. इनमें पूरी तरह से स्वचालित राइफल्स, मशीन गन्स या फिर ऐसे हथियारों में काम आने वाली चीजें शामिल हैं. हां, द्वितीय विश्व युद्ध या उससे पहले के कुछ सजावटी हथियारों को रखने की छूट है. पंप एक्शन से चलने वाली शॉटगन्स भी वेपंस एक्ट के तहत प्रतिबंधित हैं. कुछ, सेमी ऑटोमेटिक हथियारों को भी युद्ध हथियारों के रूप में परिभाषित किया गया है, लेकिन सारे नहीं.

जर्मनी में कौन बंदूक लेकर सकता है

जर्मनी में बंदूक का लाइसेंस लेने वालों को ये शर्तें अनिवार्य रूप से पूरी करनी पड़ती हैं

  1. कम से कम 18 साल का होना चाहिए
  2. उसमें आवश्यक "विश्वसनीयता” और "व्यक्तिगत योग्यता” हो
  3. आवश्यक "विशेष ज्ञान” का प्रदर्शन कर सके
  4. "जरूरत” बता सके
  5. व्यक्तिगत क्षति और संपत्ति नुकसान के लिए दस लाख यूरो तक के बीमा की राशि अदा करने लायक हो

आवेदक की ‘विश्वसनीयता' और ‘व्यक्तिगत योग्यता'

बंदूक लाइसेंस के आवेदनों पर कार्रवाई के लिए स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार होते हैं और इसीलिए विश्वसनीयता, निजी क्षमता और बंदूक की जरूरत जैसे मामलों की पड़ताल भी वही करते हैं. आवेदक के निवास स्थल के आधार पर यह जिम्मेदारी या तो पब्लिक ऑर्डर ऑफिस यानी ऑर्डनुंगजाम्ट के पास होती है या फिर पुलिस के पास.

इसके अलावा, अन्य कानूनी शर्तों के तहत ऐसा व्यक्ति अविश्वसनीय समझा जाएगा या फिर उसमें व्यक्तिगत एक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? क्षमता की कमी पाई जाएगी जो.

. पिछले दस साल में किसी अपराध के लिए सजा पाया हो

. उनकी परिस्थितियां की वजह से ऐसा समझा जाए कि वो हथियार का बेतहाशा इस्तेमाल कर सकते हैं

. वे किसी ऐसे संस्थान के सदस्य रहे हैं जो या तो प्रतिबंधित है या फिर असंवैधानिक है

. उन्होंने पिछले पांच साल में कोई ऐसा काम किया हो या फिर उसका समर्थन किया हो जो जर्मनी के विदेशी हितों को नुकसान पहुंचाने वाला हो.

. पिछले पांच साल में एक से ज्यादा बार उन्हें पुलिस कस्टडी में लिया जा चुका हो

. वो मदिरा, ड्रग्स इत्यादि का सेवन करता हो या फिर दिमागी रूप से अस्वस्थ हो.

इसके अलावा, 25 साल से कम उम्र का व्यक्ति पहली बार बंदूक के लाइसेंस के लिए तभी आवेदन कर सकता है जबकि उसके पास किसी सरकारी स्वास्थ्य अधिकारी या मनोवैज्ञानिक की ओर से जारी किया हुआ ‘मानसिक क्षमता' का सर्टिफिकेट हो.

आवेदक ‘विशेष ज्ञान' का प्रदर्शन कैसे करते हैं

बंदूक का लाइसेंस लेने वाले अभ्यर्थी को एक परीक्षा पास करना या फिर प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होता है. इसमें राज्य में हथियार रखने से संबंधित कानूनी और तकनीकी जानकारी का परीक्षण करते हैं, मसलन, बंदूकों के बारे में, उन्हें कैसे सुरक्षित तरीके से रखा जाता है और उन्हें बंदूक चलानी आती है या नहीं.

इसके अलावा कुछ अन्य परीक्षणों के माध्यम से उनके विशेष ज्ञान को भी परखा जाता है. इनमें शिकारी लाइसेंस परीक्षा, बंदूक के व्यापार की परीक्षा या तीन साल के लिए बंदूक या हथियारों के व्यापार में पूर्णकालिक रोजगार शामिल हैं.

बंदूक समेत कुछ निश्चित प्रशिक्षण कोर्स के पूर्ण होने पर एक परीक्षा होती है, जिसे विशेष ज्ञान परीक्षण कहा जाता है.

इसके अलावा, मान्यता प्राप्त शूटिंग असोसिएशन भी अपनी तरफ से कुछ परीक्षाएं आयोजित कर सकते हैं.

आवेदक बंदूक की जरूरत का प्रदर्शन कैसे करते हैं

कानून के मुताबिक आवेदकों को बंदूक का लाइसेंस पाने के लिए उसकी जरूरत को साबित करना होगा और साबित करना होगा कि यह उन्हें "निजी या आर्थिक हितों के लिए चाहिए और वो शिकारी, निशानेबाज, परंपरागत शिकारी, हथियार संग्रह करने वाले, हथियार विशेषज्ञ, हथियार निर्माता या हथियार व्यापारी से अलग हैं.”

जो लोग किसी भी तरह के अपराध को झेल चुके हैं या पीड़ित हैं, वो भी खुद के लिए हथियारों की जरूरत को प्रमाणित कर सकते हैं.

इसके अलावा शूटिंग एसोसिएशन और क्लबों के सदस्य भी बंदूक के लाइसेंस की जरूरत बता सकते हैं लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें अपने क्लबों या खेल एसोसिएशन से यह सर्टिफिकेट लेना होगा कि वे अपनी परंपरा का निर्वहन करने के लिए हथियार लेना चाहते हैं.

PAK: बिलावल भुट्टो ने देश के आर्थिक हालात से ध्यान हटाने के लिए दिया PM मोदी पर बयान!

नई दिल्ली। पाकिस्तान (Pakistan) की बेहद खस्ता आंतरिक हालात (crispy interior) के चलते वहां की सियासत में भूचाल (political earthquake) देखने को मिल रहा है। माना जा रहा है कि जटिल सियासी और आर्थिक स्थिति (economic condition) से ध्यान बंटाने के लिए ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो (Foreign Minister Bilawal Bhutto) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। विभिन्न मोर्चों पर भारत (India) से हो रही तुलना और जनता के बढ़ते दबाव के चलते ध्यान बंटाने की कोशिश हो रही है। जानकारों का कहना है कि इमरान खान का अपनी दो प्रांतीय सरकारों को बलि चढ़ाने का दांव पाकिस्तान के मौजूदा संकट को चरम पर पहुंचा सकता है। पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई, कर्ज का बोझ और अराजकता की हालत से भारत भी सतर्क है।

कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान में जिस तरह के हालात हैं उससे भारत विरोधी ताकतें और आतंकी गुट भी बेलगाम हो सकते हैं। हालांकि, कर्ज के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे गिड़गिड़ा रही पाकिस्तानी हुकूमत गंभीर पशोपेश में है, क्योंकि एक गलत कदम इसकी हालत को बद से बदतर बना सकता है। एक पूर्व राजनयिक ने कहा कि मौजूदा पाकिस्तान सरकार सीमित इलाको में सिमटी हुई है।

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प्रांतीय सरकारों में इमरान खान का दबदबा है। ऐसे में खैबर पख्तूनख्वा और पंजाब में सरकार भंग करने के इमरान के दांव का मतलब है पाकिस्तान में 66 फीसदी असेंबली सीटें खाली हो जाएंगी। इससे पाकिस्तान में राजनीतिक संकट बड़ा हो जाएगा। पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था चरमरा जाएगी। तुरंत चुनाव की मांग कर रहे इमरान इस दांव से बड़ा दबाव बनाने में सफल होंगे। लेकिन जानकार मानते हैं पाकिस्तानी सेना की भूमिका को नजरंदाज करना मुश्किल होगा। हाल ही में पाकिस्तान में नए सेना अध्यक्ष बने हैं। मौजूदा सरकार उनसे अच्छा रिश्ता बनाकर चल रही है। ऐसे में अगर सेना ने कोई कदम उठाया तो हालात अप्रत्याशित रूप से बदल सकते हैं।

जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की महंगाई, खस्ता आर्थिक हालत और बदइंतजामी के चलते राजनीतिक चर्चा में भारत को लेकर बाते हो रही हैं। वहीं आम लोग भी भारत की तुलना में कई गुना महंगाई को मुद्दा बना रहे हैं। बाढ़, कोविड, राजनीतिक अस्थिरता और वित्तीय कुप्रबंधन की वजह से संकट में फंसे पाकिस्तान की हालत बिगड़ती जा रही है। आर्थिक संकट पाकिस्तान की मौजूदा सरकार को इमरान के आगे झुकने पर मजबूर कर सकता है। ऐसे में भारत विरोधी बयान और कश्मीर को लेकर पाकिस्तानी हुक्मरानों की बयानबाजी तेज हो सकती है।

सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान में जारी मौजूदा अस्थिरता की वजह से ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ बातचीत लगातार टल रही है। कर्ज की अगली किस्त को लेकर ये बातचीत नवंबर में ही होनी थी। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता की वजह से आर्थिक मदद देने से पहले दूसरी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी आईएमएफ की हरी झंडी का इंतजार कर रही हैं। जानकार मानते हैं कि निरंतर राजनीतिक टकराव की वजह से देश की पूरी व्यवस्था कमज़ोर हो चुकी है, लेकिन राजनीतिक टकराव में कमी आने के कोई संकेत नहीं दिख रहा। पाकिस्तान के लिए गंभीर बात यह भी है है कि मौजूदा हालात में पाकिस्तान को कोई राहत मिलती नजर नहीं आती।

पिछले महीने ही सैयद असीम मुनीर अहमद शाह पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख बने थे। उन्होंने कमान संभालते ही कहा था कि भारत को मुंहतोड़ जवाब देंगे। जानकार कह रहे हैं अब शहबाज शरीफ और बिलावल भारत के खिलाफ बोलकर अपनी वफादारी दिखाएंगे। बिलावल का बयान भी इसी कड़ी में देखा जा सकता है और इन सबके मूल में वहां की आंतरिक स्थिति है।

पाकिस्तान में मुश्किल से छह अरब डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार है। इससे कुछ हफ्तों तक ही आयात बिल चुकाया जा सकता है। पाक सरकार देश के भीतर हर मोर्चे पर नकाम हो रही है। ऐसे में जनता को खुश करने के लिए ध्यान बंटाने के कई फॉर्मूले सामने आ सकते हैं। फिलहाल भारत को पूरी तरह से सतर्क निगाह बनाए रखना होगा। गौरतलब है कि पाकिस्तान सरकार ने इमरान खान और उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की तत्काल चुनाव कराने की मांग को खारिज कर दिया है। सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने कहा कि चुनाव केवल अगस्त 2023 में होंगे जब सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर लेगी। लेकिन, इमरान दबाव बनाए हुए हैं।

विदेश की खबरें | सीओपी15: जैव विविधता लक्ष्यों को पूरा करने को लेकर निवेशकों से मदद करने का आह्वान

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. विक्टोरिया, 17 दिसंबर (द कन्वरसेशन) कनाडा के मॉनट्रियल में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने इस संदेश के साथ जैव विविधता पर (सीओपी15) संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आगाज़ किया कि “ प्रकृति के बिना हम कुछ भी नहीं हैं। प्रकृति हमारी जीवन रक्षक प्रणाली है। फिर भी ऐसा लगता है कि इंसान इसे तबाह करने पर आमादा है।”

विदेश की खबरें | सीओपी15: जैव विविधता लक्ष्यों को पूरा करने को लेकर निवेशकों से मदद करने का आह्वान

विक्टोरिया, 17 दिसंबर (द कन्वरसेशन) कनाडा के मॉनट्रियल में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने इस संदेश के साथ जैव विविधता पर (सीओपी15) संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आगाज़ किया कि “ प्रकृति के बिना हम कुछ भी नहीं हैं। प्रकृति हमारी जीवन रक्षक प्रणाली है। फिर भी ऐसा लगता है कि इंसान इसे तबाह करने पर आमादा है।”

शिखर सम्मेलन में 2020 के बाद, वैश्विक जैव विविधता ढांचे पर बातचीत करने के लिए 190 से अधिक देशों के प्रतिनिधि एक साथ आए। इस ढांचे के कार्यान्वयन के लिए जैव विविधता पर निर्भर और प्रभावित करने वाली वस्तुओं और सेवाओं का हम जिस तरह से उत्पादन, उपभोग और व्यापार करते हैं, उस तरीके में बदलाव लाने की जरूरत होगी।

इसलिए कंपनियां और निवेशक इस पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। व्यवसायों और निवेशकों की जैव विविधता और संरक्षण प्रयासों में अहम भूमिका है और उन्हें स्थायी उत्पादन में निवेश करने की आवश्यकता है।

शिखर सम्मेलन में 14 दिसंबर को वित्त और जैव विविधता दिवस पर, वित्तीय क्षेत्र के वक्ताओं ने नए जैव विविधता ढांचे के साथ वित्तीय निवेश को जोड़ने के विभिन्न तरीकों पर चर्चा की।

इन वित्त वार्ताओं की प्रत्याशा में, प्रकृति से संबंधित जोखिमों और अवसरों पर निवेशकों के उपायों का प्रबंध करने के लिए एक नई वैश्विक सहभागिता पहल, ‘नेचर एक्शन 100’ शुरू की गई ।

सतत वित्त का विद्यार्थी होने के नाते मेरा मानना है कि ये पहल और चर्चाएं अहम हैं, जबकि जैव विविधता को हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें प्रकृति के अनुकूल समाधानों में अधिक लक्षित और तत्काल निवेश की जरूरत है।

"प्रकृति के बिना, हम कुछ भी नहीं हैं"

कई वैज्ञानिक अध्ययन जैव विविधता के नुकसान की दर को लेकर चिंताजनक आंकड़ें प्रस्तुत करते हैं। ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’2022 बताती है कि 1970 के बाद से वन्यजीव आबादी में औसतन 69 प्रतिशत की गिरावट हुई है। इस प्रकार मानव गतिविधियों की वजह से जैव विविधता को नुकसान और जलवायु परिवर्तन का दोहरा संकट है।

जलवायु संकट की वजह से पेरिस समझौता हुआ। इसके विपरीत जैव विविधता के नुकसान पर अब तक बहुत कम ध्यान दिया गया है। हालांकि, जैव विविधता के नुकसान से खतरे बहुत अधिक हैं।

ओईसीडी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जैव विविधता से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं, जैसे फसल परागण, जल शोधन, बाढ़ संरक्षण और कार्बन प्रच्छादन का प्रति वर्ष अनुमानित मूल्य 125 हजार से 140 हजार अरब डॉलर के बराबर है। इस वैश्विक रकम का प्रति वर्ष लगभग 44 हजार अरब डॉलर प्रकृति पर निर्भर है।

जैव विविधता हानि को कम करना

साल 2020 में आई नीति निर्माताओं के लिए जैव विविधता सम्मेलन की पांचवीं वैश्विक जैव विविधता आउटलुक सारांश रिपोर्ट, जैव विविधता को पहला जैसा करने के लिए कई उपायों का सुझाव देती है।

इनमें भूक्षेत्र और समुद्री तट के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना, उत्पादकता-बढ़ाने वाले अभिनव दृष्टिकोणों के माध्यम से कृषि प्रणालियों को फिर से डिज़ाइन करना, हरित बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल करना, टिकाऊ और स्वस्थ आहार को समर्थ बनाना और जीवष्म ईंधन के इस्तेमाल को तेजी से खत्म करना शामिल है।

व्यवसायों और निवेशकों को इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है, खासकर तब जब अधिक टिकाऊ उत्पादन और निर्माण प्रक्रियाओं में बदलाव, ऊर्जा दक्षता और अपशिष्ट में कमी, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में निवेश करने की बात आती है। साथ में उन्हें जलवायु समाधान के लिए भी निवेश करना होगा क्योंकि यह भी जैव विविधता पर समर्थन करता है।

वित्त की दुनिया में जैव विविधता जागरूकता

वित्त समुदाय में जैव विविधता के खतरों के बारे में जागरुकता ज्यादा नहीं है।

गैर-लाभकारी सीडीपी ने इस साल जैव विविधता के प्रति कंपनियों के दृष्टिकोण का आकलन करने के लिए नए प्रश्न शामिल किए। ये दुनिया की पर्यावरण प्रकटीकरण प्रणाली का संचालन करती है।

नतीजे बताते हैं कि 7,700 प्रतिवादी कंपनियों में से तीन-चौथाई कंपनियां जैव विविधता पर अपने प्रभाव का आकलन नहीं करती हैं।

परिधान और विनिर्माण जैसे प्रकृति को नुकसान पहुंचाने क्षेत्रों की अधिकांश कंपनियां अब भी जैव विविधता को हानि और पर्यावरणीय गिरावट को रोकने के लिए सार्थक कदम उठाने में नाकाम रही हैं।

हालांकि सीडीपी सर्वेक्षण में 31 प्रतिशत कंपनियों ने जैव विविधता से संबंधित पहलों का समर्थन करने की प्रतिबद्धता जताई है और 25 प्रतिशत कंपनियां अगले दो वर्षों के भीतर ऐसा करने की योजना बना रही हैं।

वित्तीय निर्णयों में जैव विविधता को शामिल करना

निवेशकों और ऋण प्रदाताओं के सामने एक प्रमुख चुनौती धन आवंटन पर फैसले लेने के लिए उन्हें साक्ष्य आधारित आंकड़े हासिल करने में परेशानी होती है।

हाल में शुरू की गई अंतरराष्ट्रीय पहल ‘ टास्कफोर्स नेचर रिलेटिड फाइनेंशल डिस्क्लोजर’ प्रकृति से संबंधित वित्तीय जोखिमों की रिपोर्ट करने और उन पर कार्रवाई करने के लिए संगठनों के वास्ते एक जोखिम प्रबंधन और प्रकटीकरण ढांचा विकसित कर रहा है।

जैव विविधता वित्तीय नीति निर्माताओं का भी ध्यान आकर्षित कर रही है। मार्च 2022 में, 120 से अधिक केंद्रीय बैंकों और पर्यवेक्षकों के संगठन ‘नेटवर्क फॉर ग्रीनिंग द फाइनेंशियल सिस्टम’ ने एक नया बयान जारी किया था। इस बयान में यह स्वीकार किया गया कि जैव विविधता को नुकसान पहुंचने से आर्थिक और वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।

प्रकृति पर कंपनियों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें साथ जोड़ना परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है।

हमें प्रकृति के अनुकूल समाधानों में और अधिक लक्षित निवेश को प्रोत्साहित करने की जरूरत है जो जैव विविधता के नुकसान की भरपाई कर सके। इसके लिए हमें जल के नीचे जीवन और भूमि पर जीवन में और अधिक निवेश की जरूरत है।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

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EMI मामले में RBI ने दिया सुप्रीम कोर्ट को जवाब

RBI answerd to Supreme Court in EMI Case

राज एक्सप्रेस। कोरोना वायरस महामारी के चलते भारत में हुए लॉकडाउन के दौरान RBI द्वारा बैंकों को लोन की किस्त जमा करने को लेकर ब्याज पर छूट देने के आदेश दिए गए थे। इस महामारी को मद्देनजर रखते हुए इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 27 मार्च को एक सर्कुलर जारी किया था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ्ते में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया और वित्त मंत्रालय और अन्य पक्षकार को जवाब देने को कहा था। वहीं, अब मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग पर सुनवाई शुरू हो चुकी है। इस मामले में अब RBI ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है।

RBI का जवाब :

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट द्वारा RBI ने हलफनामा दायर कर 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग को गलत बताते हुए जवाब मांगा था। इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कहा है कि, लॉकडाउन के दौरान कर्जधारकों को 6 महीने की EMI अभी न जमा करने की जगह बाद में जमा करने की छूट दी गई है। 6 महीने के लिए EMI में जो कर्जधारकों को जो छूट दी गई है, यदि उस अवधि का का ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों को 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा।

सुप्रीम कोर्ट का कहना :

सुप्रीम कोर्ट द्वारा RBI को एफिडेविट दाखिल कर कहा गया है कि, यदि RBI के आदेशानुसार बैंक EMI की किश्त जमा करने के लिए मोहलत देने के साथ- साथ ब्याज भी वसूलेगी। यह एक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? गैरकानूनी है। इस पर ही सुप्रीम कोर्ट ने RBI और केंद्र से जवाब मांगा था। इसके अलावा हलफनामा मीडिया में पहले आ जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, क्या RBI कोर्ट से पहले मीडिया में जवाब दाखिल करता है? वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील ने मीडिया को नोटिस जारी करने की मांग की। बेंच ने इस मांग को अनसुना करते हुए RBI से कहा है कि, आइंदा ऐसा न हो।

जस्टिस का कहना :

वहीं इस मामले में जस्टिस भूषण ने कहा कि, 2 विषय हैं। एक मोरेटोरियम अवधि के लिए मूल धन पर कोई ब्याज न लेना और दूसरा इस अवधि के बकाया ब्याज के लिए कोई ब्याज नहीं लेना। अब इस मामले में अगली सुनवाई 12 जून को होगी।

सुप्रीम कोर्ट की जनहित याचिका :

बताते चलें, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसके अनुसार, लॉकडाउन के दौरान लोन की किश्त के ब्याज में छूट मिलनी चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई से जवाब मांगा था। साथ ही यह भी कहा गया है कि, अभी ब्याज नहीं लगाया गया तो, बाद में EMI पर ब्याज और बढ़ जाएगा।

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