कानपुर ब्यूरो
Updated Sun, 20 Sep 2020 09:48 PM IST

भूलने की बीमारी अल्जाइमर लाइलाज नहीं

बलिया। बुढ़ापे में होने वाली बीमारी अल्जाइमर से लोगों में जागरूकता फैलाने के दृष्टिकोण से जिला अस्पताल में गोष्ठी का आयोजन गुरूवार को किया गया। जिसमें विश्व अल्जाइमर्स डे पर सीएमएम चेंबर में चिकित्सकों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
जिला अस्पताल में कार्यरत फिजिशियन डा. तोषिका सिंह न कहा कि अल्जाइमार लाइलाज बीमारी नहीं है। इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। बुजुर्गों को अकेले छोड़ना इस बीमारी को दावत देना है। लिहाजा हमें अपने बुजुर्गों को अकेला नहीं छोडना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसी बुजुर्ग में भूलने की आदत मिलती है, वह अपना रोज का कार्य ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं तो चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि ऐसे लक्षण अल्जाइमर के हो सकते हैं। डा. सिंह ने कहा कि अल्जाइमर बीमारी के लक्षण मिलने पर मरीज को किसी मानसिक विशेषज्ञ या वृद्धावस्था मानसिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। इस अवसर पर सीएमएस डा. एसपी राय, डा. रमेश कुमार, डा. बीपी सिंह, डा. आरएन सिंह, डा. अनुराग सिंह, डा.विनेश कुमार, डा. मिथिलेश सिंह, डा. अरविंद सिंह उपस्थित रहे।

अल्जाइमर लाइलाज नहीं
बलिया। बुढ़ापे में भूलने की बीमारी बढ़ती जा रही है।ं इस रोग से ग्रसित लोग अक्सर घरों में उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। जिससे उनकी बीमारी दिनों दिन बढ़ती ही जाती है। हालांकि इसकी समय से पहचान व उपचार से उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। रोजमर्रे की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन होना, रोज घटने वाली घटनाओं को याद नहीं रखना, अपना दैनिक कार्य आसानी से न कर पाना आदि लक्षण अल्जाइमर के हैं। इस तरह के लक्षण बुजुर्गों में देखने को मिलते हैं। इन लक्षणों के उत्पन्न होते ही वे उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। घर ही नहीं बाहर भी वे मजाक के पर्याय बनते जाते हैं। जिससे उनकी दिनचर्या पर कुप्रभाव पड़ता है और वे इस बीमारी के उस स्टेज तक पहुंच जाते हैं, जहां से उन्हें वापस ला पाना बड़ा कठिन हो जाता है। हालांकि इस रोग की पहचान शीघ्र हो जाय तो इसे ठीक किया जा सकता है। ऐसे बुजुर्गों के साथ प्यार व दुलार से पेश आने पर भी उन्हें राहत मिल सकती है। यदि इस तरह के लक्षण किसी बुजुर्ग में मिले तो उसे वृद्धावस्था मानसिक रोग विशेषज्ञ अथवा मानसिक रोग विशेषज्ञ से उपचार कराना चाहिए।
इनसेट.
अकेलापन बन सकता है कारण
बलिया। ज्यादातर समय में अकेले रहना मानसिक बीमारी को दावत दे सकता है। ऐसा स्वस्थ्य युवा या अन्य वर्ग के लोगो में भी संभव हो सकता है। लेकिन अगर बुजुर्ग ज्यादातर समय अकेले रहते हैं और उन्हें पूछने वाला कोई न हो तो वह धीरे-धीरे अल्जाइमर बीमारी की चपेट में आ सकता है। लिहाजा बुजुर्गों को अकेले छोडऩा उचित व न्याय संगत नहीं है। साथ ही समाज को भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर ऐसे बुजुर्गों के हौसला अफजाई में मदद करने से अल्जाइमर से राहत मिल सकती है।
कोट=
ओपीडी में हर माह एक-दो अल्जाइमर के मरीज आते हैं। उनका उपचार स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है। लेकिन जिला अस्पताल में ऐसी बीमारी की कोई दवा पलब्ध नहीं है। उपचार करने पर दवा बाहर से खरीदनी पड़ेगी।
= डा. तोषिका सिंह, फिजीशियन, जिला अस्पताल, बलिया।

बलिया। बुढ़ापे में होने वाली बीमारी अल्जाइमर से लोगों में जागरूकता फैलाने के दृष्टिकोण से जिला अस्पताल में गोष्ठी का आयोजन गुरूवार को किया गया। जिसमें विश्व अल्जाइमर्स डे पर सीएमएम चेंबर में चिकित्सकों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।


जिला अस्पताल में कार्यरत फिजिशियन डा. तोषिका सिंह न कहा बुजुर्गों के लक्षण कि अल्जाइमार लाइलाज बीमारी नहीं है। इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। बुजुर्गों को अकेले छोड़ना इस बीमारी को दावत देना है। लिहाजा हमें अपने बुजुर्गों को अकेला नहीं छोडना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसी बुजुर्ग में भूलने की आदत मिलती है, वह अपना रोज का कार्य ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं तो चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि ऐसे लक्षण अल्जाइमर के हो सकते हैं। डा. सिंह ने कहा कि अल्जाइमर बीमारी के लक्षण मिलने पर मरीज को किसी मानसिक विशेषज्ञ बुजुर्गों के लक्षण या वृद्धावस्था मानसिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। इस अवसर पर सीएमएस डा. एसपी राय, डा. रमेश कुमार, डा. बीपी सिंह, डा. आरएन सिंह, डा. अनुराग सिंह, डा.विनेश कुमार, डा. मिथिलेश सिंह, डा. अरविंद सिंह उपस्थित रहे।

अल्जाइमर लाइलाज नहीं
बलिया। बुढ़ापे में भूलने की बीमारी बढ़ती जा रही है।ं इस रोग से ग्रसित लोग अक्सर घरों में उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। जिससे उनकी बीमारी दिनों दिन बढ़ती ही जाती है। हालांकि इसकी समय से पहचान व उपचार से उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। रोजमर्रे की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन होना, रोज घटने वाली घटनाओं को याद नहीं रखना, अपना दैनिक कार्य आसानी से न कर पाना आदि लक्षण अल्जाइमर के हैं। इस तरह के लक्षण बुजुर्गों में देखने को मिलते हैं। इन लक्षणों के उत्पन्न होते ही वे उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। घर ही नहीं बाहर भी वे मजाक के पर्याय बनते जाते हैं। जिससे उनकी दिनचर्या पर कुप्रभाव पड़ता है और वे इस बीमारी के उस स्टेज तक पहुंच जाते हैं, जहां से उन्हें वापस ला पाना बड़ा कठिन हो जाता है। हालांकि इस रोग की पहचान शीघ्र हो जाय तो इसे ठीक किया जा सकता है। ऐसे बुजुर्गों के साथ प्यार व दुलार से पेश आने पर भी उन्हें राहत मिल सकती है। यदि इस तरह के लक्षण किसी बुजुर्ग में मिले तो उसे वृद्धावस्था मानसिक रोग विशेषज्ञ अथवा मानसिक रोग विशेषज्ञ से उपचार कराना चाहिए।
इनसेट.
अकेलापन बन सकता है कारण
बलिया। ज्यादातर समय में अकेले रहना मानसिक बीमारी को दावत दे सकता है। ऐसा स्वस्थ्य युवा या अन्य वर्ग के लोगो में भी संभव हो सकता है। लेकिन अगर बुजुर्ग ज्यादातर समय अकेले रहते हैं और उन्हें पूछने वाला कोई न हो तो वह धीरे-धीरे अल्जाइमर बीमारी की चपेट में आ सकता है। लिहाजा बुजुर्गों को अकेले छोडऩा उचित व न्याय संगत नहीं है। साथ ही समाज को भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर ऐसे बुजुर्गों के हौसला अफजाई में मदद करने से अल्जाइमर से राहत मिल सकती है।

कोट=
ओपीडी में हर माह एक-दो अल्जाइमर के मरीज आते हैं। उनका उपचार स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है। लेकिन जिला अस्पताल में ऐसी बीमारी की कोई दवा पलब्ध नहीं है। उपचार करने पर दवा बाहर से खरीदनी पड़ेगी।
= डा. तोषिका सिंह, फिजीशियन, जिला अस्पताल, बलिया।

बुजुर्गों को दिखाएं अपनापन, भूलने की बीमारी से बचाएं

Kanpur Bureau

कानपुर ब्यूरो
Updated Sun, 20 Sep 2020 09:48 PM IST

bujrgo ko dikhaye apnapan

फर्रुखाबाद। बुढ़ापे में लोगों को बीमारियां घेरने लगती हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख बीमारी बुढ़ापे में भूलने (अल्जाइमर्स -डिमेंशिया) की है। इस बीमारी से बुजुर्गों को बचाने के लिए हर वर्ष 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर्स-डिमेंशिया दिवस मनाया जाता है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.दलवीर सिंह का कहना है कि बुजुर्गों को डिमेंशिया से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उन्हें अकेलापन न महसूस होने दें। समय निकालकर उनसे बातें करें और उनकी बातों का ध्यान रखें। ऐसे कुछ उपाय करें कि वे व्यस्त रहें। उनकी मनपसंद चीजों का ख्याल रखें। करीब 65 साल की उम्र के बाद लोगों में यह बीमारी देखने को मिलती है। इसके लक्षण आते ही चिकित्सक से परामर्श लें। इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में से एक है कि जीवन शैली में एकदम से बदलाव आना जैसे- शरीर में आलसपन का आना, लोगों से बात करने से कतराना, बीमारियों को नजरंदाज करना, भरपूर नींद का न आना, किसी पर भी शक करना आदि ।
बताया कि 21 से 27 सितंबर तक डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के दौरान रैली, संगोष्ठी, अर्बन स्लैम कैंप, मंद बुद्धि प्रमाणपत्र प्रदान करने के संबंध में शिविर आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं।
डिमेंशिया के लक्षण :
रोजमर्रा की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन आना, रोज घटने वाली घटनाओं को भूल जाना, दैनिक कार्य न कर पाना आदि। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रोल, सिर की चोट, ब्रेन स्ट्रोक, एनीमिया और कुपोषण के अलावा नशे की लत होने के चलते भी इस बीमारी के चपेट में आने की आशंका रहती है । ऐसी किसी भी स्थिति में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (NIMHANS) के टोल फ्री नंबर- 080-46110007 पर कॉल कर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या का समाधान पा सकते हैं ।

फर्रुखाबाद। बुढ़ापे बुजुर्गों के लक्षण में लोगों को बीमारियां घेरने लगती हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख बीमारी बुढ़ापे में भूलने (अल्जाइमर्स -डिमेंशिया) की है। इस बीमारी से बुजुर्गों को बचाने के लिए हर वर्ष 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर्स-डिमेंशिया दिवस मनाया जाता है।


अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.दलवीर सिंह का कहना है कि बुजुर्गों को डिमेंशिया से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उन्हें अकेलापन न महसूस होने दें। समय निकालकर उनसे बातें करें और उनकी बातों का ध्यान रखें। ऐसे कुछ उपाय करें कि वे व्यस्त रहें। उनकी मनपसंद चीजों का ख्याल रखें। करीब 65 साल की उम्र के बाद लोगों में यह बीमारी देखने को मिलती है। इसके लक्षण आते ही चिकित्सक से परामर्श लें। इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में से एक है कि जीवन शैली में एकदम से बदलाव आना जैसे- शरीर में आलसपन का आना, लोगों से बात करने से कतराना, बीमारियों को नजरंदाज करना, भरपूर नींद का न आना, किसी पर भी शक करना आदि ।


बताया कि 21 से 27 सितंबर तक डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के दौरान रैली, संगोष्ठी, अर्बन स्लैम कैंप, मंद बुद्धि प्रमाणपत्र प्रदान करने के संबंध में शिविर आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं।
डिमेंशिया के लक्षण :
रोजमर्रा की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन आना, रोज घटने वाली घटनाओं को भूल जाना, दैनिक कार्य न कर पाना आदि। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रोल, सिर की चोट, ब्रेन स्ट्रोक, एनीमिया और कुपोषण के अलावा नशे की लत होने के चलते भी इस बीमारी के चपेट में आने की आशंका रहती है । ऐसी किसी भी स्थिति में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (NIMHANS) के टोल फ्री नंबर- 080-46110007 पर कॉल कर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या का समाधान पा सकते हैं ।

धारदार कुल्हाड़ी से बुजुर्ग ने काट लिया खुद का अंग विशेष, ये थी बड़ी वजह

अंग विशेष के कटने से शरीर से खून की धार छूट गई और बुुजुर्ग असहनीय दर्द से कराहने लगा. आवाज सुनकर परिजन सोकर उठे और उनके पास पहुंचे. जहां खून बहता देखा वह पूरा माजरा समझ गए और पीड़ित को लेकर नजदीक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे.

अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग.

शांतनु भारत/रवीश पाल सिंह

  • दमोह,
  • 03 सितंबर 2022,
  • (अपडेटेड 03 सितंबर 2022, 6:41 PM IST)

मध्यप्रदेश के दमोह से एक बेहद हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां बुजुर्ग ने सिर्फ इसलिए अपना गुप्तांग काट लिया, क्योंकि उसे पेशाब पास करने में परेशानी आ रही थी. गंभीर हालत में बुजुर्ग को इसके बाद अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा है.

जिले के महरोन थाना इलाके में रहने वाले 75 साल के बुजुर्ग को पथरी की शिकायत है. इस वजह से उन्हें पेशाब करने में परेशानी आती थी. बीती रात जब बुजुर्ग से परेशानी सहन नहीं हुई तो उन्होंने घर पर रखी कुल्हाड़ी से खुद का गुप्तांग काट लिया. इससे उनका खून बहने बुजुर्गों के लक्षण लगा और असहनीय दर्द होने लगा.

दर्द से कराहने की आवाज सुनकर परिजन नींद से जागे और बुजुर्ग के पास पहुंचे. जहां खून बहता देखा परिजन पीड़ित को नजदीक के हटा स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे. लेकिन बुरी तरह जख्मी बुजुर्ग की हालत को देखते हुए डॉक्टर ने उनको दमोह जिला अस्पताल रैफर कर दिया.

AIIMS Study On Covid:बुजुर्गों में कोरोना वायरस को लेकर पैदा हो रही घबराहट ,एम्स की स्टडी में खुलासा

स्टडी में शामिल बुजुर्गों में से 92.45 प्रतिशत ऐसे थे, जिनकी देखभाल उनके घर वाले ही कर रहे थे जबकि 5.67 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते थे और 1.88 प्रतिशत बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहते थे। इनमें से 82.08 बुजुर्ग शहरी इलाकों में और 17.92 प्रतिशत बुजुर्ग ग्रामीण इलाकों में रहने वाले थे।

एम्स नई दिल्ली

एम्स नई दिल्ली

एम्स की स्टडी में 60 साल से ज्यादा उम्र के 106 ऐसे ऐसे बुजुर्गों को शामिल किया गया, जिनका इलाज एम्स में चल रहा था। इसमें 58 पुरुष और 48 महिलाएं शामिल थीं। इन 106 बुजुर्गों में से 103 की उम्र 60 से 79 साल के बीच जबकि बाकी 3 की उम्र 80 साल से ज्यादा थी। इन पर की गई स्टडी में यह पाया गया है कि, 18.87 प्रतिशत यानी 20 बुजुर्गों में डिप्रेशन के लक्षण पाए गए हैं। इनमें से 18 मरीजों में डिप्रेशन के हल्के लक्षण थे, जबकि 2 में मध्यम लक्षण थे। वहीं दूसरी तरफ 24 बुजुर्गों यानी 22.6 प्रतिशत में घबराहट के लक्षण देखे गए हैं। इनमें से 20 में घबराहट के हल्के लक्षण थे और 4 मरीजों में मध्यम किस्म के लक्षण देखे गए हैं।

स्टडी में शामिल बुजुर्गों में से 92.45 प्रतिशत ऐसे थे, जिनकी देखभाल उनके घर वाले ही कर रहे थे जबकि 5.67 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते थे और 1.88 प्रतिशत बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहते थे। इनमें से 82.08 बुजुर्ग शहरी इलाकों में और 17.92 प्रतिशत बुजुर्ग ग्रामीण इलाकों में रहने वाले थे।

यूके और हॉन्ग कॉन्ग में भी हुई थी ऐसी स्टडी

एम्स में जीरियाट्रिक मेडिसिन डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रफेसर डॉ़ विजय गुर्जर ने बताया कि, कोरोना वायरस की वजह से बुजुर्गों की मेंटल बुजुर्गों के लक्षण हेल्थ पर क्या असर पड़ा, यह जानने के लिए स्टडी की गई है। यह देश की पहली स्टडी है जिसमें बुजुर्गों की मेंटल हेल्थ पर पड़े प्रभाव को उजागर किया गया है। यूके में भी इस तरह की स्टडी की गई थी, जिसमें यह सामने आया था कि 9.2 प्रतिशत बुजुर्गों में डिप्रेशन के और 15.3 प्रतिशत में घबराहट के लक्षण देखने को मिले हैं।

इसी तरह हॉन्ग कॉन्ग में 27.69 प्रतिशत बुजुर्गों में डिप्रेशन और 27.3 प्रतिशत में एंग्जाइटी (Anxiety) के लक्षण देखे गए हैं। इससे पता चलता है कि कोरोना वायरस ने हमारे बुजुर्गों की मेंटल हेल्थ को काफी प्रभावित किया है। खासकर उनमें डिप्रेशन और एंग्जाइटी बढ़ रही है। डॉ़ विजय का कहना है कि इस वक्त जरूरत है कि हम बुजुर्गों की मेंटल हेल्थ पर ध्यान दें और उन्हें अच्छा ट्रीटमेंट उपलब्ध करवाएं।

कोविड से ठीक हुए बुजुर्ग बन रहे हैं लॉन्ग कोविड के शिकार, शरीर में इन लक्षणों के दिखते ही हो जाएं सतर्क

कोरोना से ठीक होने के बाद लोग लॉन्ग कोविड से पीड़ित हो रहे हैं, बुजुर्गों को इन प्रभावों से बचाने के लिए जरूरी है कि उनके शरीर में होने वाली बदलावों को समय रहते पहचान लिया जाए। एम्स के डॉ. विजय कुमार.

कोविड से ठीक हुए बुजुर्ग बन रहे हैं लॉन्ग कोविड के शिकार, शरीर में इन लक्षणों के दिखते ही हो जाएं सतर्क

कोरोना से ठीक होने के बाद लोग लॉन्ग कोविड से पीड़ित हो रहे हैं, बुजुर्गों को इन प्रभावों से बचाने के लिए जरूरी है कि उनके शरीर में होने वाली बदलावों को समय रहते पहचान लिया जाए। एम्स के डॉ. विजय कुमार का कहना है कि बुजुर्गों को संक्रमण से पूरी तरह ठीक होने में आठ सप्ताह तक का वक्त लग सकता है। डॉ. विजय की सलाह के आधार पर जानिए उन लक्षणों के बारे में जो बुजुर्गों के शरीर में बदलाव का संकेत हो बुजुर्गों के लक्षण सकते हैं।

नाक बंद होना : एक नाक बंद होने की समस्या भी लॉन्ग कोविड से जुड़ा एक लक्षण है।

कम दिखायी देना : आंखों की रोशनी घटने की समस्या और आंख के बाहर निकल आने की समस्या भी गंभीर लक्षण हैं।

चेहरे में भारीपन : इस तरह का भारीपन लगे और नाक के नीचे का रंग बदल जाए तो सतर्क हो जाएं।

नींद में बदलाव- कोरोना से ठीक होने के बावजूद नींद न आना या अधिक नींद आने जैसे लक्षण दिख सकते हैं।

पेशाब में जलन - पेशाब में जलन महसूस हो सकती है या फिर कुछ लोगों को पेशाब न आने की समस्या हो सकती है।

भूख बेहद कम हो जाना - कोरोना वायरस शरीर के मेटाबोलिज्म पर भी असर करता है। खाना न पचना और भूख न लगना जैसे लक्षण भी आ सकते हैं।

फैसला लेने या समझने में दिक्कत -कोरोना से दिमाग भी पर प्रभावित होता है। कोरोना से ठीक हुए मरीजों में ब्रेन फॉग के मामले देखे जा सकते हैं। ऐसे में व्यक्ति ठीक से सोच नहीं पाता।

ठीक होने में 8 सप्ताह लग सकते
एम्स के डॉक्टर विजय कुमार के मुताबिक, हल्के लक्षण वाले बुजुर्गों को भी पूरी तरह ठीक होने में 2-8 हफ्तों का समय लग सकता है। ये समय हर व्यक्ति के लिए अलग होता है। यह संक्रम दिल, दिमाग, मांसपेशियां, धमनियां-नसों पर असर करता है। जिससे कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोग हार्ट अटैक, डिप्रेशन, थकान, बदन दर्द, ब्लड क्लॉटिंग और ब्लैक फंगस जैसी दिक्कतों का सामना लोग कर रहे हैं।

ये जांचें कराएं
डी-डायमर : अगर मोटे हैं और बिस्तर पर ही लेते रहते हैं तो डी-डायमर जांच कराएं और नतीजे सही न हो तो डॉक्टर की सलाह से खून पतला करने वाली दवा लें।
शुगर-ब्लड प्रेशर : शरीर में शुगर के स्तर की लगातार जांच बुजुर्गों के लक्षण कराते रहें और डॉक्टर से सलाह लें।ठीक होने के 15 से 20 दिन बाद तक ऑक्सीजन, बुखार, ब्लड प्रेशर की जांच करते रहें।

ये लक्षण ब्लैक फंगस हो सकते हैं
कोरोना से ठीक होने के बाद कुछ लोगों में ब्लैक फंगस के मामले देखे जा रहे हैं। अगर शुरू में ही इसके लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इसका जल्दी उपचार जान बचा सकता है। यह फंगस नाक के रास्ते प्रवेश करता है। फिर से नाक के पीछे साइनस मेजन जाता है और फिर आंख और दिमाग तक जा सकता है। इस वजह से इसमें इस तरह के लक्षण दिखते हैं।
-एक नाक बंद हो जाना और नाक से गीली चीज बाहर निकलना।
-नाक के नीचे रंग का बदल जाना।
आंखों में दर्द और एक आंख का बाहर निकल आना।
-आंखों से कम दिखाई देना और आंखों को हिला न पाना।
-चेहरे में भारीपन महसूस होना।

रेटिंग: 4.91
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 114