विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट हुई है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

24.9 करोड़ डॉलर घटा विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए क्यों आई गिरावट

विदेशी मुद्रा भंडार

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 12 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 24.9 करोड़ डॉलर घटकर 583.697 अरब डॉलर रह गया। भारती रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। इससे पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 6.24 अरब डॉलर घटकर 583.945 अरब डॉलर रह गया था। 29 जनवरी 2021 को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार 590.185 अरब डॉलर के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था।

इसलिए आई गिरावट
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पांच फरवरी को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) के घटने की वजह से मुद्रा भंडार में गिरावट आई। विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती है। रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन अवधि में एफसीए 1.387 अरब डॉलर घटकर 540.951 अरब डॉलर रह गई। एफसीए को दर्शाया डॉलर में जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्ति भी शामिल होती हैं।

1.26 अरब डॉलर बढ़ा स्वर्ण भंडार का मूल्य
आंकड़ों के अनुसार दो लगातार सप्ताह में गिरावट के बाद 12 फरवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के स्वर्ण भंडार का मूल्य 1.26 अरब डॉलर बढ़कर 36.227 अरब डॉलर पहुंच गया। देश को अंतरराष्ट्रीय मु्द्रा कोष (आईएमएफ) में मिला विशेष आहरण अधिकार एक करोड़ डॉलर बढ़कर 1.513 अरब डॉलर हो गया। हालांकि, आईएमएफ के पास आरक्षित मुद्रा भंडार 13.2 करोड़ डॉलर घटकर 5.006 अरब डॉलर रह गया।

क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आई गिरावट होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 12 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 24.9 करोड़ डॉलर घटकर 583.697 अरब डॉलर रह गया। भारती रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। इससे पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 6.24 अरब डॉलर घटकर 583.945 अरब डॉलर रह गया था। 29 जनवरी 2021 को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार 590.185 अरब डॉलर के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था।

इसलिए आई गिरावट
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पांच फरवरी को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) के घटने की वजह से मुद्रा भंडार में गिरावट आई। विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती है। रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन अवधि में एफसीए 1.387 अरब डॉलर घटकर 540.951 अरब डॉलर रह गई। एफसीए को दर्शाया डॉलर में जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्ति भी शामिल होती हैं।

1.26 अरब डॉलर बढ़ा स्वर्ण भंडार का मूल्य
आंकड़ों के अनुसार दो लगातार सप्ताह में गिरावट के बाद 12 फरवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के स्वर्ण भंडार का मूल्य 1.26 अरब डॉलर बढ़कर 36.227 अरब डॉलर पहुंच गया। देश को अंतरराष्ट्रीय मु्द्रा कोष (आईएमएफ) में मिला विशेष आहरण अधिकार एक करोड़ डॉलर बढ़कर 1.513 अरब डॉलर हो गया। हालांकि, आईएमएफ के पास आरक्षित मुद्रा भंडार 13.2 करोड़ डॉलर घटकर 5.006 अरब डॉलर रह गया।

क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आई गिरावट देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?

डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, बाद में मामूली रिकवरी दिखी।

2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?

अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने के बाद भारतीय करेंसी रुपया एक बार फिर रेंगने लगा है। इस बीच, विदेशी मुद्रा भंडार ने भी चिंता बढ़ा दी है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सातवें सप्ताह गिरा है और अब यह 2 साल के निचले स्तर पर आ चुका है।

रुपया की स्थिति: डॉलर के मुकाबले रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, कारोबार के अंत में मामूली रिकवरी हुई। इसके बावजूद रुपया 19 पैसे गिरकर 80.98 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर बंद हुआ। यह पहली बार है जब भारतीय करेंसी की क्लोजिंग इतने निचले स्तर पर हुई है।

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति: आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 16 सितंबर को सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 545.652 बिलियन डॉलर पर आ गया। पिछले सप्ताह भंडार 550.871 अरब डॉलर था। विदेशी मुद्रा भंडार का यह दो साल का निचला स्तर है। अब सवाल है कि रुपया के कमजोर होने या विदेशी मुद्रा भंडार के घट जाने की कीमत आपको कैसे चुकानी पड़ सकती है?

रुपया कमजोर होने की वजह: विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत बने रहने की वजह से रुपया कमजोर हुआ है। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के समक्ष डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.72 प्रतिशत चढ़कर 112.15 पर पहुंच गया है। डॉलर इसिलए मजबूत बना हुआ है क्योंकि अमेरिकी फेड रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्याज दर में 75 बेसिस प्वाइंट बढ़ोतरी कर दी है।

दरअसल, ब्याज दर बढ़ने की वजह से ज्यादा मुनाफे के लिए विदेशी निवेशक अमेरिकी बाजार की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस वजह से डॉलर को मजबूती मिल रही है। इसके विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आई गिरावट उलट भारतीय बाजार में बिकवाली का माहौल लौट आया है। बाजार से निवेशक पैसे निकाल रहे हैं, इस वजह से भी रुपया कमजोर हुआ है।

असर क्या होगा: रुपया कमजोर होने से भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। भारत को आयात के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। रुपया कमजोर होने से आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा, जिसकी भरपाई दाम बढ़ाकर की जाएगी। इससे महंगाई बढ़ेगी। खासतौर पर पेट्रोलियम उत्पाद के मामले में भारत की आयात पर निर्भरता ज्यादा है। इसके अलावा विदेश घूमना, विदेश से सर्विसेज लेना आदि भी महंगा हो जाएगा।

विदेशी मुद्रा भंडार पर असर: रुपया कमजोर होने से विदेशी मुद्रा भंडार कमजोर होता है। देश को आयात के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं तो जाहिर सी बात है कि खजाना खाली होगा। यह आर्थिक लिहाज से ठीक बात नहीं है।

डॉलर के मुकाबले रुपया पस्त, निचले स्तर का एक और रिकॉर्ड बनाया, 2014 में इतने का था एक डॉलर

Dollar Vs Rupee: अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 6 पैसे की गिरावट के साथ एक और निचले स्तर को छुआ। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 83.06 पर खुला। बता दें 30 मई 2014 को एक डॉलर का मूल्य 59.28 रुपये था।

डॉलर के मुकाबले रुपया पस्त, निचले स्तर का एक और रिकॉर्ड बनाया, 2014 में इतने का था एक डॉलर

विदेशी बाजारों में डॉलर के मजबूत होने और विदेशी पूंजी की सतत निकासी के बीच अंतरबैंक विदेशीमुद्रा विनिमय बाजार में गुरुवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 6 पैसे की गिरावट के साथ एक और निचले स्तर को छुआ। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 83.06 पर खुला। बता दें 30 मई 2014 को एक डॉलर का मूल्य 59.28 रुपये था।

बता दें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल कीमतों में तेजी तथा निवेशकों में जोखिम लेने की धारणा कमजोर होने से भी रुपये पर असर पड़ा। एलकेपी सिक्योरिटीज के उपाध्यक्ष (शोध विश्लेषक) जतिन त्रिवेदी ने कहा कि डॉलर की बढ़ती कीमतों के बीच घबराहट में रुपये की बिकवाली के चलते रुपया नए निचले स्तर पर आ गया है।


क्यों हो रही गिरावट

एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा है कि डॉलर के बाहर जाने, चीन की मुद्रा में कमजोरी और मासिक अनुबंधों की समाप्ति से पहले कारोबारियों द्वारा अपने सौदे पूरा करने से रुपये का प्रदर्शन कमजोर रहा। अन्य एशियाई मुद्राओं में भी कमजारी रही। यूरोप और ब्रिटेन के निराशाजनक आर्थिक आंकड़ों ने डॉलर सूचकांक को मजबूती दी, जिससे रुपये पर भी असर पड़ा।


भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार: फिच

रेटिंग एजेंसी फिच ने बुधवार को कहा कि अमेरिका में मौद्रिक नीति मामले में सख्ती बरतने और वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति बढ़ने से जुड़े जोखिमों का सामना करने के लिए भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है। इसके साथ ही फिच रेटिंग्स ने कहा कि बाह्य दबावों से भारत की साख को लेकर जोखिम सीमित ही है।


फिच ने कहा, ऐसा लगता है कि अमेरिका में तेजी से मौद्रिक सख्ती किए जाने और वैश्विक स्तर पर जिंसों के बढ़ते दामों से जुड़े जोखिमों से निपटने के लिए भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। एजेंसी ने कहा कि उसे विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बने रहने की उम्मीद है और भारत का चालू खाते के घाटे (सीएडी) को एक उपयुक्त स्तर पर थामा जा सकेगा और चालू वित्त वर्ष में यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.4 फीसदी तक पहुंच जाएगा जो कि पिछले वित्त वर्ष में 1.2 फीसदी था।

डॉलर के मुकाबले रुपये को संभालने के लिए आरबीआई कर रहा उपाय

फिच ने कहा कि सार्वजनिक वित्त की स्थिति रेटिंग के लिए प्रमुख घटक बना हुआ है और भारत बाह्य वित्तपोषण पर सीमित निर्भरता की वजह से वैश्विक उतार-चढ़ाव से सापेक्षिक तौर पर बचा हुआ है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल के नौ महीनों में करीब 100 अरब डॉलर तक घट चुका है। हालांकि अब भी इसका आकार करीब 533 अरब डॉलर है। विदेशी मुद्रा भंडार में आई यह बड़ी गिरावट बढ़ते सीएडी और डॉलर के मुकाबले रुपये को संभालने के लिए रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप को दर्शाती है।

रेटिंग एजेंसी ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 8.9 महीनों के आयात व्यय के लिए पर्याप्त है और किसी भी बाहरी संकट का का सामना करने की क्षमता देता है। फिच ने कहा, इस बड़े विदेशी मुद्रा भंडार से कर्ज पुनर्गठन क्षमता को आश्वासन मिलता है। इसके अलावा अल्पकालिक बाह्य बकाया ऋण भी कुल भंडार का सिर्फ 24 फीसदी ही है।

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गति से गिरावट हो रही है। भंडार में यह आए दिन नए रिकॉर्ड स्‍तर पर गिरावट जारी है। अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार 1 ट्रिलियन डॉलर घट चुका है।

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट हुई है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गति से गिरावट हो रही है। भंडार में यह आए दिन नए रिकॉर्ड स्‍तर पर गिरावट जारी है। अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार 1 ट्रिलियन विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आई गिरावट डॉलर घट चुका है। इस साल करीब 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 फीसदी घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह 2003 के बाद सबसे तेज गिरावट है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की वजह, भारत के सेंट्रल बैंक की ओर से रुपये के गिरावट को बचाने के लिए उठाए गए कदम हैं। वहीं अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मंदी की आशंका भी गिरावट की वजह है। मंदी का एक कारण डॉलर यूरो और येन जैसी मुद्राओं मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के हाई लेवल पर पहुंच चुका है।

इसने इन मुद्राओं की होल्डिंग के डॉलर प्राइज को कम किया है, जो घटते मुद्रा भंडार को लेकर तनाव पैदा कर रहा है। इस कारण केंद्रीय बैंक रुपए के गिरावट को कंट्रोल करने के लिए कदम उठाने के लिए मजबूर हैं।

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गौरतलब है कि भारत का भंडार इस साल 96 विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आई गिरावट अरब डॉलर घटकर 538 अरब डॉलर हो गया है। देश के केंद्रीय बैंक ने कहा कि असेस्‍ट वैल्‍यूवेशन में अप्रैल से वित्तीय वर्ष के दौरान भंडार में गिरावट का 67 प्रतिशत हिस्सा है। रुपये में इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 9 फीसदी की गिरावट आई है और पिछले महीने यह रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया।

वहीं 1998 के बाद से अपने मुद्रा को संभालने के लिए जापान ने हस्तक्षेप किया है। जापान ने सितंबर में येन की स्लाइड को धीमा करने के लिए लगभग 20 अरब डॉलर खर्च किए, जो इस साल भंडार के नुकसान का लगभग 19 फीसदी हिस्सा होगा। जापान में एक मुद्रा हस्तक्षेप ने फरवरी से वहां भंडार को 19 फीसदी तक कम कर दी है।

ब्‍लूमवर्ग के अनुसार, भारत में विदेशी भंडार अभी भी 2017 के स्तर से 49 प्रतिशत अधिक है और नौ महीने के आयात का भुगतान कर सकता है। लेकिन वहीं अन्‍य देशों के लिए यह जल्‍द ही समाप्‍त हो सकता है। इस साल 42 फीसदी की गिरावट के बाद पाकिस्‍तान का 14 बिलियन डॉलर का भंडार तीन महीने के लिए आयात को कवर नहीं कर सकता।

Explainer : क्‍यों कोई देश जानबूझकर कमजोर बनाता है अपनी करेंसी, कहां और कैसे होता है इसका फायदा?

डॉलर अभी 22 साल की सबसे मजबूत स्थिति में है.

ग्‍लोबल मार्केट में अभी अमेरिकी डॉलर अन्‍य करेंसी के मुकाबले दमदार स्थिति में है. इसका फायदा भी अमेरिका को मिल रहा है, . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 24, 2022, 15:30 IST

हाइलाइट्स

अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.

नई दिल्‍ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्‍यवस्‍था का सबूत माना जाता है, लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्‍यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और कमोडिटी एक्‍सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.

आईआईएफएल सिक्‍योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्‍ता का कहना है कि ज्‍यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्‍हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्‍ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्‍यादा उत्‍पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि ज्‍यादातर ग्‍लोबल लेनदेन डॉलर में होता है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्‍पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्‍ता हो जाता है और ग्‍लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.

चीन ने साल आठ साल में दो बार घटाया युआन का मूल्‍य
अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा चीन दो बार कर चुका है. एक बार साल 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी. डॉलर के मुकाबले युआन को करीब 2 फीसदी कमजोर बनाकर चीन ने अपने निर्यात के रास्‍ते चौड़े कर दिए. इससे पहले चीन के निर्यात में 8.2 फीसदी की बड़ी गिरावट दिखी थी, जिसे संभालने के लिए युआन को कमजोर बनाया और अपना निर्यात सस्‍ता कर उसकी मांग बढ़ा ली.

इसके बाद साल 2019 में फिर चीन ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी. यह विवाद उस समय गहराया जब अमेरिका ने चीन के करीब 300 अरब डॉलर के निर्यात पर अपने यहां 10 फीसदी अतिरिक्‍त आयात शुल्‍क लगा दिया. इससे चीन की मुद्रा में गिरावट आई साथ ही चीन के निर्यात पर भी असर पड़ा. इसके बाद चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्‍स बैंक ऑफ चाइना ने युआन का एक्‍सचेंज रेट और घटा दिया, ताकि निर्यात सस्‍ता कर उद्योगों को और अवसर दिलाया जा सके. चीन को इसका फायदा इसलिए भी मिला, क्‍योंकि ग्‍लोबल निर्यात में जहां अमेरिका की हिस्‍सेदारी 8.1 फीसदी और जर्मनी की 7.8 फीसदी है, वहीं चीन करीब दोगुना 15 फीसदी के आसपास बना हुआ है.

अर्थव्‍यवस्‍था को कैसे मिलता है कमजोर मुद्रा का लाभ
कमोडिटी एनालिस्‍ट और फॉरेक्‍स मार्केट के जानकार जतिन त्रिवेदी का कहना है कि किसी देश के अपनी मुद्रा को कमजोर बनाने का सबसे बड़ा कारण अर्थव्‍यवस्‍था को रफ्तार देना भी रहता है. हालांकि, यह कदम तभी उठाना चाहिए जब उस देश को अपना निर्यात बढ़ने का भरोसा हो और उसके निर्यात की अर्थव्‍यवस्‍था में बड़ी हिस्‍सेदारी हो. यही कारण विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आई गिरावट है कि चीन दो बार अपनी मुद्रा का अवमूल्‍यन करने के बावजूद बाजी मार गया. दरअसल, जब निर्यात बढ़ता है तो उद्योगों को भी अपना उत्‍पादन बढ़ाने का मौका मिलता है, जिससे नई नौकरियों और कारोबार विस्‍तार का माहौल बनता है. यानी कुलमिलाकर यह कदम अर्थव्‍यवस्‍था को चलायमान बनाने में मददगार होता है.

दूसरी ओर, अपनी मुद्रा की कीमत घटाने पर किसी देश को खामियाजा भी भुगतना पड़ता है. इससे आयात महंगा हो जाता है और देश में भी महंगाई का जोखिम बढ़ जाता है. साथ ही किसी देश की मुद्रा में कमजोरी आने से उसका विदेशी मुद्रा भंडार भी कम होने लगता है. भारत को ही देख लें तो साल 2022 में जहां डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 10 फीसदी कमजोरी आई है, वहीं विदेशी मुद्रा भंडार में भी करीब 100 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है. महंगाई भी आरबीआई के 6 फीसदी के दायरे से बाहर ही चल रही, जो बीते दो महीने से 7 फीसदी के ऊपर चली गई है.

व्‍यापार घाटा थामने में मदद
किसी देश की करेंसी जब मजबूत होती है तो उसका निर्यात महंगा और आयात सस्‍ता हो जाता है. यानी आयात ज्‍यादा होने और निर्यात में कमी आने से उसका व्‍यापार घाटा भी बढ़ने लगता है. ऐसे में उस देश के चालू खाते के घाटे पर भी असर पड़ता है. कई बार देश अपनी मुद्रा का अवमूल्‍यन कर निर्यात बढ़ा लेते हैं, जिससे व्‍यापार घाटे की यह खाई भी संकरी हो जाती है और चालू खाते के घाटे का बोझ भी हल्‍का हो जाता है.

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